(डॉक्टर बिन्नो अब्बास रिज़वी) कर निर्धारणअधिकारी. नगर निगम, लखनऊ । द्वारा लिखी गई कोविड-19पर गजल

“दिल में उम्मीद अभी बाक़ी है”

 

कैद ए हस्ती के अंधेरों को मिटाऊं कैसे।

आंधियों से मैं चिराग़ों को बचाऊँ कैसे।।

हर तरफ सिर्फ अंधेरे ही नज़र आते हैं।

गर्दिश ए वक़्त का पहरा है जिधर जाते हैं।।

मुल्क का हाल यह देखा नहीं जाता हमसे।

दूर तक देखो तो सन्नाटे ही सन्नाटे हैं।

 घर जो आबाद थे वह आज सब वीराने हैं 

हर तरफ देखिए बस मौत के अफसाने हैं।

ज़िंदगी जो कभी हम लोगो से ही ज़िंदा थी।

आज…

हम सब बस उसी ज़िंदगी के मारे हैं।

मुश्किलें सर पे अजब शान से आयीं हम पर।

कोई तैयार नहीं हाथ पकड़ने के लिए।

खौंफ की ऐसी ज़माने में चली हैं हवाएं।

कुछ समझ आता नहीं है के अब किधर जाएं।

हां……

मगर दिल में एक उम्मीद अभी बाक़ी है।

रात गुजरेगी तो फिर सुबह ज़रूर आएगी।

इन अंधेरों से ही सूरज भी कभी निकलेगा।

सहमे सहमे हुए होंठों पे हंसी आएगी।

चांदनी चांद बिछाएगा हर एक आंगन में।

जितनी बिगड़ी हुई हालत है संवर जाएगी।

फिर से एक बार गले मिलने लगेंगे सब लोग।

फिर वफ़ा मुल्क में पहली सी बहार आएगी।।

 

वफ़ा लखनवी

(डॉक्टर बिन्नो अब्बास रिज़वी)

कर निर्धारण अधिकारी

नगर निगम, लखनऊ ।