यूपी में निकाय चुनाव होने में लग सकते है दो से तीन महीनें पिछड़ों का आरक्षण तय करने के बाद होगा निकाय चुनाव

(सत्ता की शान) लखनऊ 28 दिसम्बर बुधवार हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार की ओर से पिछड़ों का आरक्षण तय करने के बाद ही निकाय चुनाव कराने के निर्णय से साफ हो गया है कि इसमें वक्त लगेगा। सरकार को आयोग का गठन करना होगा और आयोग की निगरानी में ही अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की प्रक्रिया अपनानी होगीनगरीय निकाय चुनाव को लेकर मंगलवार को हाईकोर्ट का निर्णय आने के बाद प्रदेश सरकार ने जिस तरह से ओबीसी आरक्षण को लेकर अपना पक्ष साफ किया उससे तय है कि अब चुनाव अप्रैल या मई से पहले नहीं में हो पाएंगे। निकाय चुनाव कम से कम तीन महीने के लिए टल जाएंगे।फरवरी में सरकार ग्लोबल इंवेस्टर समिट करा रही है। फरवरी-मार्च में यूपी समेत विभिन्न बोर्डों की परीक्षाएं भी होनी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार के लिए अप्रैल या मई से पहले चुनाव कराना संभव नहीं है।ओबीसी आरक्षण के लिए सरकार आयोग गठित करेगी। आयोग की देखरेख में ओबीसी आरक्षण देने की प्रक्रिया तय की जाएगी।इसमें समय लगना तय है। हाईकोर्ट के निर्णय व सरकार के ताजा रुख के बाद निकाय चुनाव समय पर होना अब मुश्किल है।मौजूदा नगरीय निकायों के बोर्डों का कार्यकाल 12 दिसंबर से लेकर जनवरी अंत तक समाप्त हो रहा है।राज्य निर्वाचन आयोग को भी चुनाव कराने के लिए डेढ़ माह यानी 45 दिनों की जरूरत होती है, किंतु विशेष परिस्थितियों में आयोग ने 35-36 दिनों में चुनाव करा लेता है।वर्ष 2017 में भी आयोग ने 27 अक्टूबर को चुनाव की अधिसूचना जारी कर तीन चरणों में मतदान 22, 26 व 29 नवंबर को कराए थे।मतों की गिनती एक दिसंबर को हुई थी। यानी वर्ष 2017 में भी आयोग ने केवल 36 दिनों में चुनाव संपन्न कराया था।हाईकोर्ट के फैसले से हुई किरकिरी से सरकार नाराज है। इसका खामियाजा जिम्मेदार अधिकारियों को उठाना पड़ सकता है। चूक के लिए जल्द ही अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी। प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों पर कार्रवाई तय मानी जा रही है।हाईकोर्ट ने मंगलवार को ट्रिपल टेस्ट फार्मूला अपनाए बगैर ओबीसी आरक्षण देने को गलत मानते हुए ओबीसी सीटों को सामान्य घोषित करते हुए 31 जनवरी तक चुनाव कराने के लिए कहा है। बगैर ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने पर भाजपा को राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।