विज्ञान और साहित्य की नगरी लखनऊ में हुआ ऐतिहासिक भव्य नहज-उल-बलाग़ा सम्मेलन

प्रेस विज्ञप्ति

विज्ञान और साहित्य की नगरी लखनऊ में हुआ ऐतिहासिक भव्य नहज-उल-बलाग़ा सम्मेलन
9 जुलाई, 2023 लखनऊ: छोटे इमामबाड़े में अंतर्राष्ट्रीय नहजुल बलाग़ा सम्मलेन का आयोजन किया गया। इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सरबराह जवादिया अरबी कॉलेज (वाराणसी) मौलाना सैयद शमीमुल हसन साहब एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में मौलाना सैयद नजीबुल हसन जैदी (मुंबई), हज़रत मौलाना मुस्तफा मदनी (नूर फाउंडेशन, लखनऊ), प्रोफेसर अनीस अशफाक, (उर्दू विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष) जनाब आनंद सिरकार मौजूद रहे। इस मौके पर पूर्व में आयोजित की गयी नहजुल बलाग़ा प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार वितरित किया गया।
कार्यक्रम की निज़ामत मौलाना सईद नक़वी ने अंजाम दी। कार्यक्रम की शुरुवात, पवित्र क़ुरआन की तिलावत क़ारी एजाज़ हुसैन ने की। उसके बाद बच्चों ने अरबी भाषा में एक खूबसूरत नज़्म पेश कर लोगों को मन मोह लिया।
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए भारत के वरिष्ठ धर्मगुरु मौलाना सैयद शमीमुल हसन ने कहा कि इल्म और साहित्य में हमारे पास तीन अहम् पुस्तकें मौजूद है, एक है पवित्र कुरान, दूसरी नहजुल बलाग़ा है, और तीसरी सहीफ़ा ए कामिला है। क़ुरआन अल्लाह द्वारा भेजे गए संदेशों का एक संग्रह है जिसकी कोई मिसाल नहीं है।
नहजुल बलाग़ा इल्म का दरवाज़ा कहे जाने वाले अमीर अल-मोमिनीन हज़रत इमाम अली (अस) के उपदेशों, पत्रों और कथनों का संग्रह है। वहीँ सहीफ़ा ए कामिला हज़रत इमाम ज़ैन उल-आबिदीन की प्रार्थनाओं का एक संग्रह है। इन दोनों किताबों हम अपनी क़ौम के लिए सम्मान समझते हैं।
उन्होंने ने कहा कि जब हज़रत इमाम अली (अस) के एक चाहने वाले धर्मगुरु ने नहजुल बलाग़ा के रूप में कुछ उपदेश और कथन एकत्र किए, तो कोई भी उसे इसका जवाब नहीं ला सका। 96 हिजरी से पहले, शायद इसलिए लोग हज़रत अली (अस) के उपदेशों और कथनो को एकत्र नहीं कर सके, क्योंकि बनी उमय्या और अब्बासी शासन के दौरान हज़रत अली (अस) के चाहने वालों को यातनाएं दी जाती थी और मार दिया जाता था। लेकिन जब परिस्थितियाँ अनुकूल हुईं, तो अल्लामा सैयद रज़ी ने इस काम को अंजाम दिया, और जो आज हमारे बीच नहजुल बलाग़ा के रूप में मौजूद है।
सम्मलेन में आगे, मस्जिद ए ईरानियन (मुंबई) के पेशइमाम व वरिष्ठ धर्मगुरु मौलाना सैयद नजीबुल हसन जैदी ने विलायत और विलायत के तकाज़े पर रौशनी डालते हुए कहा कि जिस तरह आज नहजुल बलाग़ा मज़लूम है, उसी तरह विलायत ए अली इब्ने अबी तालिब भी मज़लूम है। मुसलमानो के बीच विलायत ए अली इब्ने अबी तालिब उस दिन के मज़लूम है जिस दिन से पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने जिस दिन से ग़दीर के मैदान में विलायत ए अली का एलान किया गया। लेकिन यह सब यहाँ नहीं रुका, बल्कि विलायत के दायरे को कम करने की कोशिश की गयी और हज़रत अली (अस) के व्यक्तित्व को आम इंसान की तरह पेश किया गया जो की अल्लाह के नुमाइंदे थे।
उन्होंने कहा कि नहजुल बलाग़ा हमे आत्मसम्मान के साथ जीवन गुज़ारने की प्रेरणा देती है। हज़रत अली (अस) कई मौकों पर लोगों को अपने जीवन को बेहतर बनाने पर ज़ोर था, और कैसे मुश्किल जिंगदी को आसान बनाया जा सकता है। यह सभी उपदेश नहजुल बलाग़ा में उल्लेखित किये गए हैं।
उर्दू विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष, प्रोफेसर अनीस अशफाक ने कहा कि नहजुल बलाग़ा में मौजूद उपदेशों, पत्रों और कथनों का अध्यन करने से यह पता चलता है की इसमें ब्रह्मांड के रहस्य मौजूद हैं। इस किताब में ज़िन्दगी गुज़ारने के सही तरीके को बताया गया है, अगर लोग इससे इल्म हासिल करें और अपनी ज़िन्दगी में उसको लागू करें तो बेहतर जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
नूर फाउंडेशन के मौलाना मुस्तफ़ा मदनी ने बहुत ही सुंदर ढंग से नहजुल बलाग़ा और हज़रत अली (अस) के बारे में बेहतरीन बातें व्यक्त की और कहा कि नहजुल बलाग़ा अरबी भाषा और साहित्य की उत्कृष्ट पुस्तक है और अभिव्यक्ति की शक्ति का एक दुर्लभ उदाहरण। अल बलाग़ा पर बोलना मेरे लिए बहुत बड़ा सौभाग्य है। अल्लाह सुब्हानहु वा ता’आला ने हज़रत अली को जो हिकमत और हिकमत का ख़ज़ाना दिया था, जिसकी झलक आज हम नहजुल बलाग़ा में दिखती है।
मौलाना ने कहा कि नहजुल बलाग़ा ज्ञान और उपदेश से भरपूर अरबी भाषा और साहित्य का एक खूबसूरत गुलदस्ता है। आज के समय में इस किताब का अध्यन करना चाहिए।
वरिष्ठ वास्तुकार, अनिन्दा सिरकार ने कहा कि मैं आप सभी हाज़रीन को बधाई देता हूं। आपका मौला अली के प्रति प्रेम और दुनिया भर में लाखों लोगों के सामने उनके ईश्वरीय व्यक्तित्व के प्रति विस्मय के कारण आज यहाँ एकत्र हुए हैं। आप में से अधिकांश, या शायद सभी, नहजुल बलाग़ा के “खुतबे” और उपदेशों को बखूबी जानते हैं। इसके अलावा, हज़रत अली (अस) की शान मे तारीफ़ करना सूरज को दीया दिखाने के रूपक के समान है।
उन्होंने आगे कहा कि जब मैं या कोई भी व्यक्ति मौला अली का नाम लेता है, तो उसके ज़हन में जो सबसे महत्वपूर्ण विचार आता है वह एक ऐसे व्यक्त्तिव का है जो ज्ञान, धर्म और बुद्धि का अद्वितीय सागर है। मौला अली पराक्रम ज्ञान और न्याय का एक दुर्लभ संगम है। एक तरफ़ उनकी तलवार, जुल्फिकार, और दूसरी तरफ उनके ज्ञान, न्याय और ईश्वरीयता के शब्द, एक अद्वितीय कथा बुनते हैं जो कि शक्ति और न्याय और धर्मियों की दुनिया, दोनों में प्रवेश करती है और ईश्वर से डरने वालों को आस्था सांत्वना और आशा प्रदान करती है। उनकी तलवार जुल्फिकार और उनके ज्ञान के शब्द एक ऐसी कहानी बुनते हैं जो शक्ति और न्याय, वीरता एवं धर्मियों की दुनिया दोनों में प्रवेश करती है और ईश्वर में आस्था को प्रबल सांत्वना और आशा प्रदान करती है।
कार्यक्रम के दौरान, उस्ताद शायर जनाब सरवर नवाब सरवर (लखनऊ) द्वारा दी गयी पंक्ति पर आधारित, मौलाना साबिर अली इमरानी और जनाब मायल चंदोलवी अपना कलाम पेश किया। वहीँ पुरस्कार प्रतियोगिता में महत्वपूर्ण सफलता हासिल करने वालों प्रतिभागियों को उत्कृष्ट पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
इस मौके पर अल्लामा मुफ्ती जाफर हुसैन द्वारा अनुवाद की गयी नहजुल बलागा के साथ दो अन्य किताबों दस्तूर ए ज़िन्दगी और कलाम ए अमीर – अमीर ए कलाम की रस्म अदायगी की गयी।
मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी ने आये हुए सभी अतिथियों और लोगों का शुक्रिया अदा किया और मुल्क में अमन चैन के लिए दुआ की।
इस भव्य सम्मेलन का आयोजन इदारा इल्म ओ दानिश के साथ साथ मरकज़ ए अफ़कारे इस्लामी, ऐनुल हयात ट्रस्ट, सेंटर फॉर इस्लामिक थॉट, हैदरी एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी, दीन और जिंदगी, केयर इस्लाम, उलेमा अकबरपुर आंबेडकरनगर , नाबा फाउंडेशन, इलाही घराना, अर्श एसोसिएट्स, सहित विभिन्न संगठनों के सहयोग से किया गया।