मुसलमानों के पर्सनल लॉ इस्लामी शरीअत का अटूट हिस्सा है मौलाना खालिद रशीद

जुमा के खुत्बे में यू०सी०सी० के विरोध की अपील

लखनऊ.7 जुलाई। मुस्लिम पर्सनल लॉ की बुनिया पवित्र कुरआन और हदीस हैं। इस लिये इसमें किसी भी प्रकार का बदलाव किसी मनुष्य के बस में नहीं है। इस्लाम ने जो आदेश दिये हैं उसको स्वीकार करना और उस पर अमल करना हर मुसलमान के लिये अनिवार्य है। निकाह व तलाक से सम्बन्धित आदेश कुरआन की पांच सूरत और विरासत के आदेश सूरह निसा में विस्तार से बयान हुए हैं।
इन खयालात का इजहार इमाम ईदगाह लखनऊ मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने किया। वो जामा मस्जिद ईदगाह लखनऊ में जुमे की नमाज से पूर्व सम्बोधित कर रहे थे।
ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तमाम मस्जिदों के इमामों से ये अपील की थी कि जुमे के खुत्बे में मुसलमानों को पर्सनल लॉ के महत्व से अवगत करायें और यू०सी०सी० के विरूद्ध लॉ कमीशन ऑफ इण्डिया को अपनी राय भेजें।
मौलाना फरंगी महली ने कहा कि जो लोग अपने धार्मिक मामले पर अमल करने के लिये तैयार नहीं हैं उनके लिये पहले से स्पेशल मैरिज एक्ट और दूसरे बहुत सारे कानून मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश को विश्व में सबसे बड़ा जमहूरी देश होने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान इस देश में रहने वाले हर नागरिक के अधिकार की रक्षा की जिम्मेदारी ली है उसमें हर नागरिक को अपने धर्म और अपने अपने कल्चर पर अमल करने की पूरी पूरी आजादी मिली है। उन्होंने कहा कि आजादी से पहले हमेशा मुल्क के सियासतदा मुस्लि पर्सनल लॉ की रक्षा और उसमें हस्तक्षेप न करने का आश्वासन दिलाते रहे गांधी जी ने स्वयं गोल मेज कान्फ्रेंस लन्दन में 1931 में कहा था ष्मुस्लिम पर्सनल लॉ को किसी भी कानून के द्वारा नहीं छेड़ा जायेगा।मौलाना ने कहा कि ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने युनिफार्म सिविल कोड को सिरे से नकार दिया है और बोर्ड ने ये निर्णय लिया है कि उसके विरूद्ध सड़क पर कोई प्रदर्शन नहीं किया जायेगा। बोर्ड ने देश के हित में आम लोगों से भी इसका विरोध करने की अपील की है। मौलाना ने कहा कि बोर्ड ने अपने विरोध पर आधारित डाकूमेन्ट्स लॉ कमीशन को भेज दिये हैं। अन्त में मौलाना ने देश में अम्न व शान्ति कायम रहने की दुआ की।