लखनऊ । (ज़रगाम रिज़वी) ग़मगीन माहौल में पुराने लखनऊ के सआदतगंज स्थित रौजा-ए-नजफ़ से हजरत अली अलैहिस्सलाम की शहादत पर उनकी याद में ताबूत का जुलूस निकाला गया। यह जुलूस या अली मौला हैदर मौला की सदाओ के साथ निकाला गया। इस जुलूस में लाखो की तादाद पहुचे गमजदा रोजदार मौला ए कायनात अली इब्ने अबि तालिब अ0 स0 की शहादत पर सियाह लिबास पहने आंसुओं के सैलाब के दरम्यान मौला की आख़िरी रुक्सत के लिए ज़ार ओ क़तार रो रहे थे।
1400 साल से अधिक समय पुराना हज़रत अली की शहादत की याद में निकलने वाला यह जुलूस 152 साल पुराना है। यह जुलूस पहली बार यानी 21वी रमज़ान 1870 को हसन मिर्ज़ा ने मौलवीगंज स्थित रस्सी बटान से हज़रत अली के ताबूत का जुलूस नाम से शुरू किया था। 1873 से उन्होंने उक्त ताबूत को रुस्तम नगर से उठाना शुरू किया था। सन 1930 में हसन मिर्ज़ा का इन्तिकाल हो गया। इसी साल शबीह नजफ की बनियाद भी डाली गयी। हसन मिर्ज़ा के इन्तिकाल के बाद यह ताबूत उठाने का कार्य उनके दामाद अफज़ल हुसैन ने 1930 से 1945 तक बखूबी अंजाम दिया। 1946 से अब तक हसन मिर्ज़ा के घराने के लोग लाखों अकीदतमंदो के साथ ताबूत उठाने का कार्य अंजाम दे रहे है। सन 1873 में यह ताबूत का जुलूस रूस्तम नगर, कश्मीरी मोहल्ला, पुल गुलाम हुसैन, महमूद नगर, चावल वाली गली, नक्खास चौराहा, बिल्लौचपुरा, हैदरगंज और बुलाकी अड्डा होते हुए कर्बला तालकटोरा जाता था। नए समझौते के तहत अब यह जुलूस रूस्तम नगर, छोटे साहब आलम रोड, कर्बला दियानतदौला, काजमैन रोड, मंसूर नगर तिराहा, गिरधारी सिंह इंटर कालेज, दीन दयाल रोड, अर्शफाबाद, बिल्लौचपुरा चौराहा, हैदरगंज और बुलाकी अड्डा होते हुए कर्बला तालकटोरा जाता है।
इस ताबूत की ज़ियारत करने के लिए लखनऊ सहित पूरे भारत वर्ष से तमाम अजादार यहां आते है।इस ताबूत के जुलूस में शिया समुदाय के अलावा सभी धर्म के लोग शिरकत करते है। 21वीं रमजान वाला ताबूत में अमीरउल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम को एतिहासिक अहमियत हासिल है। जब पहली बार 1870 में ताबूत निकला उसके बाद दिन पर दिन इसकी शोहरत बढ़ती गयी और आज यह ताबूत का जुलूस हिन्दुस्तान सहित अब विदेशो में भी काफी मशहूर है। आज भी नाला-ओ-फरियाद, आहो-फुगा के साथ आंसुओं के साये में जब यह ताबूत शबीह – ए-नजफ से निकलता है तो पूरी फिज़ा सोगवार हो जाती है, माहौल गमज़दा हो जाता है, ऐसा महसूस होता है कि हम 21वी रमजान सन 40 हिजरी में इराक स्थित कूफे में पहुंच गये है और यह शबीह ताबूत न होकर यह हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जनाजा है।