
लखनऊ। (ज़रगाम रिज़वी) पहली मोहर्रम को ऐतिहासिक आसिफी इमामबाड़े से शाही जरीह का जुलूस शानो-शौकत के साथ निकाला गया। जुलूस में हजारों की संख्या में लोगों ने शिकरत की और हजरत इमाम हुसैन सहित कर्बला के 72 शहीदों को नजराने अकीदत पेश की। इस दौरान हर कोई काला लिबास पहने नम आंखों के साथ मातम मना रहा था। जुलूस से पूर्व इमामबाड़ा परिसर में हुई मजलिस में बताया गया कि हजरत इमाम हुसैन 28 रजब को मदीने से चल कर दो मोहर्रम को कर्बला पहुंचे थे, जहां यजीदी फौजों ने उन्हें तीन दिन भूखा-प्यासा शहीद कर दिया था।


जुलूस के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतिजाम किए गए थे।
बता दे कि पहली मोहर्रम को शाही मोम की जरीह का जुलूस बड़ा इमामबाड़ा से लेकर छोटा इमामबाड़ा तक निकाला गया। मजलिस से पहले सोजख्वानी पेश की गई। शाही जरीह का जुलूस जैसे ही आसिफी इमामबाड़े से बाहर आया तो वहां मौजूद हजारों अजादारों ने उसका बोसा लेना शुरू कर दिया और हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद कर रोने लगे। जुलूस में 20 फुट की मोम जरीह और 15 फुट की अबरक की जरीह आकषर्ण का केन्द्र था। दोनों जरीह का हर कोई बोसा लेना चाहता है। जुलूस में हजारों की संख्या में महिलाएं पुरुष और बच्चे शरीक हुए और कर्बला के शहीदों की याद में जारों-कतार रोकर अपने गम का इजहार किया।



जुलूस में शामिल हाथी, ऊंट और सवार ने लोगों को शाही दौर की याद दिला दी। बैंड और नक्कारे मातमी धुनें निकालकर इस बात का ऐलान कर रहे थे कि मोहर्रम की शुरुआत हो चुकी है। लखनऊ समेत पूरी दुनिया में मोहर्रम में अज़ादारी का सिलसिला चेहल्लुम तक चलता है।
जुलूस में शाही बाजा, शहनाई, रौशन चौकी, सबील, हाथी और ऊंट भी शामिल थे। हाथियों पर बैठे लोग हाथों में चांदी के शाह चिह्न ताज, शेर, सूरज और चांद लिए थे। इसके पीछे अमारी, ऊंट, काली झंडी, हरी झंडी, चांदी की नक्काशी झंडी, बल्लम, बरछी, जरीजे और मोर पंखी थी।

जुलूस में हजरत इमाम हुसैन की सवारी का प्रतीक जुलजुनाह (घोड़ा) हजरत अब्बास के दो अलम के साथ अन्य अलम और ताबूत आदि शामिल थे। जुलूस के साथ अंजुमन शब्बीरिया नौहाख्वानी और सीनाजनी करती चल रही थी।
जुलूस की सुरक्षा के लिए आगे-पीछे सुरक्षा बलों की विशेष टुकड़िया चल रही थी। वहीं, आसपास की बड़ी इमारतों पर से भी सुरक्षा बल पैनी नजर बनाए हुए थे। जुलूस जब रूमी गेट से निकलता हुआ छोटे इमामबाड़े पहुंचा तो यहां पर अंतिम जियारत के लिए लोगों की भीड़ काफी बढ़ गई।

इस दौरान लोग तबर्रुकात की ज्यारत कर बोसा लेते और मन्नत मांगते नजर आए।