यूनिफॉर्म सिबिल कोर्ट पर मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली का बयान

लखनऊ

यूनिफॉर्म सिबिल कोर्ट पर मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली का बयान

इमाम ईदगाह लखनऊ मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली चेयरमैन इस्लामिक सेन्टर आफ इण्डिया ने युनिफार्म सिविल कोड के समबन्ध में अपने एक अखबारी बयान में कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड का मसला सिर्फ मुसलमानों का मसला नहीं है बल्कि बहुत से वर्ग इससे प्रभावित होंगे और जितने भी धर्म हैं सबके अपने अपने अलग अलग पर्सनल लाज हैं। कोई भी व्यक्ति इस बात को स्वीकार्य नही कर सकता कि इसको अपनी प्रतिदिन की जिन्दगी में अपने धार्मिक आदेश पर अमल करने से रोका जाये।
उन्होने कहा कि जो लोग अपने धार्मिक मामलात पर अमल करने के लिए तैय्यार नहीं हैं उनके लिए शादी के सम्बन्ध में पहले ही से सिविल कोर्ट की शक्ल में स्पेशल मैरिज एक्ट और दूसरे नियम उपलब्ध हैं।भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकरों की सुरक्षा के लिए कई धारायें मौजूद हैं। धारा 16, 25, 29 और 30 इसका बड़ा उदाहरण है।मौलाना फरंगी महली ने कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड सिर्फ एक धर्म का नही बल्कि देश में जितने भी धर्म हैं सबके लिए हानिकारक है। इस लिए सरकार को इससे बचना चाहिए और देश और कौम के हित में जो काम हो उसको करना चाहिए।
मौलाना फरंगी महली ने कहा कि अपने ही देश के संबधिान में कई राज्यों को विशेष दर्जा दिया गया है। मेजूरम, नागालैण्ड और त्रिपुरा इसका उदाहरण है। कबाइलियों के नियम, रस्म व रिवाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी संविधान ने ली है इसको कैसे समाप्त किया जा सकता है? लोगों पर इस बात को जाहिर करना जरूरी है कि तमाम धर्म के अपने अपने पर्सनल लाज हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ मुसलमानों के ही पर्सनल लाज हैं। यह बात भी जग जाहिर है कि मुस्लिम पर्सनल लॉज की जड़ कुरान और हदीस है। जैसे निकाह व तलाक के नियत से सम्बन्धित कुरान पाक की पाँच सूरत में उसका विवरण है और विरासत के सम्बन्ध में एक पूरा कू हैं। मियाँ बीवी के अधिकार के सम्बन्ध में विभिन्न सूरतों में बयान है। इस लिए कोई भी मुसलमान इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकता कि मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करके यूनिफार्म सिविल कोड को लागू किया जाए।