हफ्ता-ए-वहदत की मुनासिबत से मजलिसे-ए-उलेमा-ए-हिंद की जानिब से ‘सीरते रसूल (स.अ.व) की असरी मानवीयत और वहदते इस्लामी’ के विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया, शिया और सुन्नी उलेमा ने अपने विचार व्यक्त किए
अंजुमन फलाहे दारैन लखनऊ के अध्यक्ष मौलाना जहांगीर आलम क़ासमी ने पहली तक़रीर करते हुए सीरते पैग़म्बर (स.अ.व) की रौशनी में एकता की दावत देते हुए कहा कि उम्मत की एकता वक़्त की एहम ज़रूरत हैं। मुसलमानों को चाहिए के इन्तेशार से बचे क्योकि इख़्तेलाफ और इन्तेशार की बुनियाद पर उम्मत कमज़ोर हो जाएगी। मौलाना ने कहा कि सभी अम्बिया ने अपनी उम्मत को मुत्तहिद रहने की दावत दी। रसूले ख़ुदा (स.अ.व) ने उम्मत की एकता के लिए नमाज़े जुमा और ईदैन की नमाज़ो का क़याम किया ताकि हफ्ते में एक बार नामज़े जुमा में और साल में नमाज़े ईदैन के मौक़े पर एक जगह जमा होकर अमली तौर पर अपनी एकता का सबूत पेश किया जाये। क्योकि नमाज़ो में ज़ात-पात, ऊंच-नीच और छोटे बड़े की कोई तफरीक़ नहीं होती। लिहाज़ा नमाज़े जुमा और ईदैन इत्तेहादे उम्मत का बेहतरीन मरकज़ हैं।
मजलिसे-ए-उलेमा-ए-हिंद के सचिव और मारूफ़ शिया आलिमे दीन मौलाना सैय्यद तक़ी आग़ा (हैदराबाद) ने अपनी तक़रीर में कहा कि रसूले ख़ुदा (स.अ.व) की सीरत हर दौर में इंसानियत के लिए बेहतरीन नमूना-ए-अमल और बाएसे रहमत है। जिस तरह जिहालत के ज़माने में लोग तबक़ाति निज़ाम, बुग़ज़ और हसद , हक़ तलफ़ी ,आपसी विवाद, ज़ुल्म और बर्बरता ,क़तए रहमी ,शिर्क ,नाइंसाफी और बे अदालती का शिकार थे और रसूले ख़ुदा (स.अ.व) के पवित्र चरित्र ने उन्हें अदालत और इंसाफ की तरफ माएल किया। ज़ुल्म और बर्बरता का ख़ात्मा हुआ। तबक़ाति निज़ाम की जड़े उखाड़ फेंकी गयी, हुक़ूक़ मुअय्यन किये गए और सिलए रहमी का हुक्म दिया गया।
मारूफ़ सुन्नी सूफ़ी आलिम मौलाना अमीर हमज़ा अशरफी निज़ामी (मालेगांव) ने अपनी तक़रीर में कहा कि अगर उम्मते मुस्लेमा रसूले ख़ुदा (स.अ.व) की बात पर सच्चे दिल से अमल करने लगे तो एक पल में सभी इख़्तेलाफ़ और इन्तेशार ख़त्म हो जायेगे। रसूले ख़ुदा (स.अ.व) ने फ़रमाया कि अगर किसी मुस्लमान को मशरिक़ में तकलीफ़ हो और मग़रिब के मुस्लमान को उसका एहसास न हो तो वह मुस्लमान नहीं हैं। इससे ज़ियादा एकता का पैग़ाम और क्या हो सकता है।
मारूफ़ शिया आलिमे दीन मौलाना नजीबुल हसन ज़ैदी (ईरान) ने तक़रीर करते हुए कि क़ुरान में रसूले इस्लाम (स.अ.व) की अज़मत और उनकी रहमत को कुछ इस तरह पेश किया गया कि हम ने तुम्हारे दरमियान उस रसूल को भेजा जो तुममे से हैं। जो तुम्हारी मुसीबतो पर तड़प उठता है। वो तुम्हारी हिदायत के लिए हरीस है और तुम्हारे लिए अज़ीज़ और रहीम हैं। उन्होंने ने कहा कि एक मानवी वजूद अपने ज़ाती फायदे के बारे में नहीं सोचता बल्कि इंसानियत के नफा और नुकसान के बारे में फ़िक्र मंद रहता हैं ,बल्कि वो आलमीन के बारे में ग़ौर और फिक्र करता हैं।
मारूफ सुन्नी सूफी आलिम मौलाना सैय्यद सरवर चिश्ती अजमेरी ने अपनी तक़रीर में नास्बियत और ख़ारजियत पर सख़्त तन्क़ीद करते हुए कहा कि मैं आशिक़ाने रसूल (स.अ.व) से सवाल करना चाहता हूँ कि आखिर क्या वजह हैं कि इश्क़े रसूल (स.अ.व) का दावा करने वाले ‘अहले किसा’ को फरामोश कर बैठे हैं ? पंजतने पाक अ.स से खुसुमत, उनकी हक़ तलफी, उनके दुश्मनो की मधहा सराई क्यों की जा रही हैं ? रसूले इस्लाम की कफील हज़रत अबू तालिब अ.स की दुश्मनी में ज़मीन और आसमान के कुलाबे मिलाना दर अस्ल रसूले इस्लाम (स.अ.व) से दुश्मनी की दलील है।
प्रोग्राम के आखिर में मजलिसे-ए-उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सै० कल्बे जवाद नक़वी ने मेज़बान की हैसियत से सभी मेहमानो का शुक्रिया अदा किया। मौलाना ने तक़रीर करते हुए कहा कि काफी समय से आलमी सतह पर ये साज़िश हो रही है कि मुसलमान आपस में एक न होने पाए। क्योकि अगर मुस्लमान आपस में एक हो गए तो कोई भी सुपर पावर उनका मुक़ाबला नहीं कर सकती। इस लिए लोगो को ख़रीदा जाता हैं ताकि वो मुसलमानो को एक दूसरे के खिलाफ वरग़लाते रहे। इस्लाम के नाम पर मुख़्तलिफ़ तंज़ीमे बनाई जाती हैं ताकि उन्हें मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सके। यही वजह है की आज मुस्लमान मुस्लमान को मार रहा हैं।
प्रोग्राम के आख़िर में मौलाना सै० कल्बे जवाद नक़वी ने मजलिसे-ए-उलेमा-ए-हिंद की तरफ से सभी शोरका का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया और इत्तेहादे उम्मत पर ज़ोर दिया। कार्यक्रम के संयोजक एवं नाज़िम आदिल फ़राज़ नक़वी ने सभी अतिथियों का संक्षिप्त परिचय दिया। कार्यक्रम का प्रसारण मजलिसे-ए-उलेमा-ए-हिंद के यूट्यूब चैनल पर किया गया।
जारी कर्ता : मजलिसे-ए-उलेमा-ए-हिंद