ऐनुल हयात ट्रस्ट द्वारा इमाम हज़रत अली (अ0) के ग़म में मजलिस का आयोजन
लखनऊ, 31 मार्च | ऐनुल हयात ट्रस्ट द्वारा इमाम हज़रत अली (अ0) की शहादत के ग़म में छोटा इमामबाड़ा हुसैनाबाद में रात्रि 8.25 बजे एक मजलिस मुनअक़िद हुई जिसको जनाब मौलाना अली अब्बास ख़ान साहब ने ख़िताब किया। मजलिस का आग़ाज़ क़ारी मुज्तबा रिज़वी ने तिलावते क़ुरान से किया गया, जिसके बाद जनाब अहसन नासिर और जनाब वसी अहमद ने दर्द भरी आवाज़ में हज़रत अली को अक़ीदत पेश करते हुए अश्आर पढ़े।
मरसिये के बाद मौलाना मुशाहिद आलम साहब ने इमाम हज़रत अली (अ0) की वसीयत और उसकी अहमियत को बयान किया। मजलिस को जनाब मौलाना अली अब्बास ख़ान साहब ने ख़िताब करते हुए बताया कि पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के दामाद हजरत अली अलैहिस्सलाम, इंसाफ व मोहब्बत के पैकर थे और आला किरदार के मिसाली इंसान थे । वे कहते थेः हे लोगो! जान लो कि तुम्हारे कामों की कसौटी मज़हब है, तुम्हें बचाने वाला, अल्लाह का खौफ है, तुम्हारी ज़ीनत तुम्हरा किरदार है |
पैगम्बरे इस्लाम (स) ने अपने ज़िन्दगी के आख़िरी हज से लौटते वक़्त अल्लाह के हुक्म से इमाम अली (अ) को मक्का से कुछ दूर पर मौजूद गदीरे ख़ुम के मैदान में पर लगभग 1 लाख 25 हजार हाजियों के बीच अपना जानशीन बनाया था।मजलिस में हज़रत अली की शहादत की घटना बताते करते हुए मौलाना अली अब्बास ख़ान साहब ने बताया कि शहादत की रात इफ्तार के लिए उन्हें छोटी बेटी हजरत उम्मे कुलसूम के घर जाना था। इफ्तार के वक़्त उन्हों ने सिर्फ तीन निवाले खाना खाया और फिर इबादत में लीन हो गए। वे उस रात सुबह तक बेचैन रहे। हर थोड़े वक़्त बाद आसमान और सितारों को देखते और जैसे जैसे भोर का वक़्त पास आता जा रहा था उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वे कह रहे थे मुझसे शहादत के लिए जिस रात का वादा किया गया था, वह यही रात है। वह रात ख़त्म हुई और हजरत अली भोर के वक़्त फज्र की नमाज के लिए मस्जिद की ओर बढ़े। घर में पली हुई बत्तख़ें उनके पीछे पीछे चलने लगीं और उनके कपड़ों से लिपट गईं। घर वालों ने उन्हें हटाना चाहा लेकिन हजरत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि इन्हें इनकी स्थिति पर छोड़ दो। ये अभी चिल्ला रही हैं लेकिन जल्द ही विलाप करेंगी।
इसके बाद हज़रत अली मस्जिद में पहुंचे और नमाज के लिए खड़े हुए। जब वे सज्दे में गए तो इब्ने मुल्जिम नामक इंसान ने ज़हर से बुझी तलवार से उनके सिर पर एक वार किया। इस वार से उनका सिर माथे तक फट गया और उससे ख़ून फव्वारे की तरह निकलने लगा। उसी स्थिति में उन्हीने कहा “रब्बे काबा की क़सम मै क़ामयाब हो गया।“ लोगों ने देखा कि उनके सिर का ख़़ून उनकी दाढ़ी से बह रहा है और वह पूरी लाल हो चुकी है। उसी स्थिति में उन्होंने कहाः यह वही वादा है जो अल्लाह और उसके पैगम्बर ने मुझसे किया है। जब जमीन और आसमान हिलने लगे और अल्लाह के फरिश्ते जिब्राइल की आवाज पूरी दुनिया में गूंजी तो कूफे के लोगों को पता चला कि मस्जिद में हजरत अली अलैहिस्सलाम पर हमला किया गया है।
हज़रत अली का अपने क़ातिल के साथ भी शाइस्ता एवं अदालती रूप से व्यवहार करने की बात करते हुए उन्होंने बताया कि हजरत अली के दोनों बेटे इमाम हसन व इमाम हुसैन अलैहिमस्सलाम बड़े तेजी से उनके पास पहुंचे। कुछ लोग हजरत अली को उठाना चाह रहे थे ताकि वे नमाज पूरी करें लेकिन उनमें खड़े होने की ताक़त नहीं रह गई थी। उन्होंने बैठ कर नमाज पूरी की और घहरे घाव और ज़हर की तेज़ी से बेसुध हो गए। उन्हें एक मोटी चादर में रखा गया और उनके दोनों बेटे उस चादर को पकड़ कर उन्हें घर लाए। जब उन पर तलवार चलाने वाले इब्ने मुल्जिम को इमाम अली अलैहिस्सलाम के पास लाया गया। उन्होंने उसका चेहरा देखा और पूछा क्या मैं तूझ पर बुरा इमाम था? यह जानने के बावजूद कि तू मेरी हत्या करेगा क्या मैंने तेरे साथ एहसान नहीं किया? मैं चाहता था कि अपनी भलाई से तुझे इस दुनिया का सबसे बदक़िस्मत इंसान न बनने दूं और तुझे गुमराही से निकाल दूं। इब्ने मुल्जिम रोने लगा। हजरत अली ने अपने बेटे इमाम हसन से कहा कि मेरे बेटे! इसके साथ भला रवैया करो, क्या तुम नहीं देख रहे हो कि इसकी आंखों से कितना डर झलक रहा है। इमाम हसन ने कहा कि इसने आप पर तलवार का वार किया है और आप कह रहे हैं कि इसके साथ भला रवैया रखो ? इमाम ने कहाः हम पैगम्बरे इस्लाम के घर वाले मेहरबान हैं। उसे अपना खाना और दूध दो। अगर मैं दुनिया से चला गया तो उससे मौत का बदला लेना या माफ़ कर देना तुम्हारा अधिकार होगा और अगर मैं जीवित रहा तो फिर मुझे पता है कि उसके साथ क्या करना है और मैं माफ़ करने को तरज़ी देता हूं।
वह शबे कद्र की रातों में से एक थी और उसी रात एक योग्य लीडर , इन्साफ पसंद इमाम, यतीमो से प्यार करने वाले शासक, अल्लाह का चुना बंदा और पैगम्बरे इस्लाम के जानशीन को ज़मीन के सबसे बद्क़िसमत व ज़ालिम इंसान इब्ने मुल्जिम ने अपनी तलवार के वार से शहादत के पास पहुंचा दिया। उनका जन्म मुसलमानों के धार्मिक स्थल काबा शरीफ के अंदर हुआ और ऐसी घटना न तो उनसे पहले कभी हुई और न ही उनके बाद हुई। उनकी शहादत भी मस्जिद में इबादत के दौरान हुई। इन दोनों नुक्तों के बीच हजरत अली अलैहिस्सलाम का पूरी ज़िन्दगी अल्लाह के लिए समर्पित है |
हज़रत अली का लोगों एवं यतीमो की मदद करने एवं उनके बीच मक़बूल होते हुए मौलाना ने बताया कि रमजान की बीसवीं तारीख़ की सुबह कूफे के यतीम बच्चों ने एक लम्बे वक़्त के बाद उस मेहरबान और हमदर्द इंसान को पहचाना जो हर रात अज्ञात तरीक़े से उनके घर पहुंचता था और उनकी मदद करता था। हजरत अली के एक बेटे मुहम्मद इब्ने हनफिया कहते हैं। लोग घर में आते थे और मेरे वालिद को सलाम करते थे। वे सलाम का जवाब देते थे और कहते थे कि मुझ से पूछ लो, इससे पहले कि मैं तुम्हारे बीच न रहूं, लेकिन तुम्हारे इमाम को जो घाव लगा है उसके चलते अपने सवालो को कम करो। उनके यह कहते ही लोग फूट फूट कर रोने लगते।
मजलिस के बाद अंजुमन सिपाहे हुसैनी ने नौहाख्वानी और सीनाज़नी की और मजलिस में मौजूद लोगों ने बहते आसुओं के साथ हज़रत अली (अ0) के जानशीन हज़रत इमाम मेहदी (अ0) को इस मौके पर पुरसा पेश किया और आखिर में मौलाना सक़लैन बाक़री साहब ने ज़ियारत पढ़ाई |