इस्लाम में औरत जहमत नहीं.. रहमत
इस्लाम की पहचान मुसलमान नहीं, रसूल अल्लाह
बीबी फातिमा की सीरत औरतों के लिए नमूना-ए-अमल है
लखनऊ । अल्लाह ईश्वर की मोहब्बत अपने बंदों से देखनी है तो एक मां की अपने औलाद से मोहब्बत देखो । जिस तरह एक मां अपनी औलाद को आगोश से जुदा नहीं होने देती, जिंदगी के साथ भी और मरने के बाद भी । इस्लाम में औरत जहमत नहीं बल्कि रहमत है, जिसे रसूले पाक ने बीबी फातमा जहरा के किरदार से दुनिया को पहचनवाया ।
इसलिए इस्लाम को मुसलमान से नहीं रसूल से समझो। रविवार को चौक स्थित इमामबाड़ा गुफरानमाब में एसआई एडवरटाइजर्स के संचालक इज़हार आबिदी की मा स्व0 अनीस फातिमा के इसाले सवाब की मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना हबीब हैदर ने कुरान पाक की रोशनी में मां की मोहब्बत को अल्लाह की मोहब्बत बताया । मौलाना ने कहा कि अल्लाह ईश्वर की मोहब्बत को समझना है तो मां की मोहब्बत को समझो।
मौलाना ने कहा कि अरब में रसूल से पहले का दौर अहंकारी और औरतों को गुलाम समझने वाला अरबी समाज था। बेटियों को जिंदा दफन करने वाले अरबी समाज औरतों को लौंडी गुलाम बना कर रखते थे। ऐसे दौर में रसूले खुदा ने अल्लाह के हुक्म से 1400 साल पहले बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश दिया।
रसूले खुदा ने हजरत फातिमा जहरा को इतना बुलंद दर्जा अता किया कि अरब बेटी की रहमत को पहचान सके। रसूल-ए-खुदा ने बेटियों को एल्म से लेकर पिता की संपत्ति में हक आदि अधिकार भी दिलाएं।
मौलाना हबीब हैदर ने कहा कि इस्लाम की पहचान मुसलमान नहीं बल्कि रसूले खुदा व उनके अहलेबैत हे । साथ ही ये भी कहा कि दहशतगर्द मुसलमान नहीं बल्कि मुसलमान के भेस में इस्लाम के दुश्मन हैं। मौलाना ने कहा की मोहर्रम में आजाखानों में हिंदू, मुसलमान सहित तमाम धर्म क़े लोग होने पर गम ए हुसैन मना कर हिंदुस्तान की असल तस्वीर पेश करते हैं। यही हमारा हिंदुस्तानी समाज है। जहां धर्म का कोई भेदभाव नहीं। यही सच्चा दीन इस्लाम है जिसे कर्बला में हजरत इमाम हुसैन व 72 साथियों ने अपनी कुर्बानी देकर जिंदा रखा ।
मौलाना ने कर्बला में शहीद मासूमों की मां का जिक्र बयान करते हुए खीराजे अकीदत पेश की। इस दौरान बड़ी संख्या में अकीदतमंद मौजूद रहे। वही अंजुमनो ने नौहा पड़ कर मातम किया। मजलिस बाद नज़्र व फातिहा में लोगो ने शिरकत की।