मदर्स डे पर एक मां को एक बेटी की श्रद्धांजलि
मां के मरने से तड़पने के सिवा कुछ भी नहीं
सर से जो उठ गया साया तो रहा कुछ भी नहीं
बताओ मां को मैं अपनी कहां ढूंढे हम ए दिल
घर के हर सिम्त खामोशी के सिवा कुछ भी नहीं
आप का साया ही बहुत था जिंदगी के लिए
साथ हुआ ले गई आप अपने रहा कुछ भी नहीं
अपने आंचल से छुपा ले फिर एक बार मुझे
बेकरार आंखों में ख्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं
हजारों रंज वा गम झेले हैं मैंने हंस हंस के
आंधियां आए भी तो मुझको हुआ कुछ भी नहीं
अबकी टूटी हूं तो बिखरी हूं चूर चूर होकर
जब्त किया ऐसे लगता है कि हुआ कुछ भी नहीं
जो दिल का दर्द था कागज पर लिख दिया सारा
और क्या लिखूं मेरे पास बचा कुछ भी नहीं
(वफा लखनवी) डॉ0 बिन्नो अब्बास रिजवी
जोनल अधिकारी नगर निगम लखनऊ